Our Member, Nidhi, sharing her learnings of life @LDL

लाइट डी लिटरेसी !! इस संस्था से जुड़े मुझे करीब 3 वर्ष हो गए और मानो बहुत कुछ पाया और खोया है इस सफ़र में ….पर जो एक चीज़ आज भी नही बदली वो है इन बच्चों की मुस्कान से मिलने वाली उर्जा, ऐसा लगता है कि इस भागती दौड़ती जिंदगी में सुकून का जरिया है ये बच्चे। आज से 3 साल पहले जुड़ते वक़्त ये सोचा भी नहीं था की जुड़ाव कुछ इस कदर बनेगा कि हम इन्हें एक शिक्षक नहीं बल्कि इनके परिवार का हिस्सा होकर इनके बड़े भाई-बहन बन के इनकी देखभाल करेंगे।ये NGO खुली तो साक्षरता प्रदान करने के लिए थी पर आज के दिन में हम केवल इन बच्चो को शिक्षा ही नही बल्कि खेलकूद,स्वास्थ्य,आचार-विचार, दुनियादारी की समझ, देश में होने वाली घटनाओं से रुबरू और बढ़ते जुर्म के प्रति जागरुक करने का पूरा प्रयास करते हैं ।

शायद इसी का फल है कि इन बच्चो से हमे अथाह प्यार मिलता है,ये बच्चे हमारी बात इस कदर समझते हैं मानो हम इन्हें सच का रास्ता दिखने हों । ये भरोसा वैसे एक दिन का भी तो नहीं है ना….पाई पाई मेहनत लगी है इन बच्चों को इनके अस्तित्व से पहचान कराने में। पढ़ाई के साथ साथ इनके लिए काम करते हुए जो मुझे एहसास हुआ वो ये कि अभी भी बहुत अन्धेरा है इन झुग्गियो में …मैने पाया कि लोग अपनी लड़कियो को पढ़ाने तो भेज देते है पर उन्हे इस से फर्क नही पड़ता कि उनकी निजी जिंदगी में क्या दिक्कतें आती रहती है,और इन घटनाओं को अपने आँखों के सामने होते देख मैने हर मुमकिन कोशिश कि मैं एक लौ भी बन पाऊ उनके इस अंधकार में। कई बार मुझे एहसास हुआ कि मै उस तबके से लड़ रही जिसको शायद ये एहसास भी ना हो कि मैं उनके ही जीवन को आसान बना रही। पर हाँ जहाँ ऐसे लोग मिलते है वहीं ऐसे भी माता पिता मिलते हैं जो भगवान के भाती हमें पूजते है, जिन्हें पता है कि हम ये नि:स्वार्थ काम केवल उनके जीवन को उजाला प्रदान करने के लिए कर रहे।

बच्चों से मिलने वाला प्यार और उनकी उपलब्धियां मुझे हर दिन एक नई उम्मीद से भर देती है, कभी नहीं सोचा था की एक हफ्ते में दो दिन जा के पढ़ाने से धीरे धीरे मुझे इतना लगाव हो जायगा कि मैं आज हर चीज़ छोड़ सकती हूँ पर ये NGO नहीं ।

 

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